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काशीराम जी चौधरी का बोकाखात के सामाजिक,शैक्षिक,धार्मिक, साहित्य-संस्कृति,राजनीति जैसे तमाम क्षेत्रों में योगदान अतुलनीय रहा था। उनके नेतृत्व में बोकाखात की तमाम संस्थाओं ने स्थाई रूप से कई महत्वपूर्ण योजनाओं को सफलता का जामा पहनाया है। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और अपने आप में एक संगठन थे। काशीराम चौधरी एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व थे जो ठान लेते वह कर के ही दम लेते थे। सही मायने में वे समाज के गौरव के साथ साथ भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत थे। उनमें सामाजिक संस्थाओं को नेतृत्व प्रदान करने की अदभुत क्षमता थी। वे मानते थे कि नम्नता ही मेरी पूंजी है। वे कहते थे, गम पीना सीखो तो और आगे बढ़ोगे। राह सही हो तो इंसान भटकता नहीं।
समाजसेवी काशीराम जी चौधरी अपने पूज्य पिता मीनाराम चौधरी और माता मोहरी देवी चौधरी के तीन पुत्र संतानों में कनिष्ठ थे। उनका जन्म बोकाखात के समीप लखुजान नामक स्थान में 26 नवंबर 1934 को हुआ। गांव के पास की ही गड्मूर प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की शुरुआत की।इसके बाद समय -समय पर लखुजान चाय बागान विद्यालय,राजाबाड़ी एमई स्कूल, नुमलीगढ़ के श्री सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी में उस समय अस्थायी रूप से चलने वाले विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात लखुजान से बोकाखात नगर आ गए। उनका दाखिला तत्कालीन बोकाखात हाई स्कूल में किया गया, जहां उन्होंने चौथी और पांचवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। शिक्षा ग्रहण के दौरान नुमलीगढ़ में हिंदी शिक्षक दिवंगत गोमती प्रसादजी तिवारी ने उन्हें हिंदी शिक्षा का पाठ पढ़ाया। पूज्य शिक्षागुरु तिवारी जी को वे बड़े आदर के साथ स्मरण करते थे। वर्ष 1952 में नाहरकटिया की गीता देवी के साथ दांपत्य सूत्र में बंधने के बाद से पारिवारिक जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया।शिक्षा के प्रसार में खासी रुचि लेने वाले काशीराम चौधरी ने बोकाखात अंचल में विज्ञान शिक्षा के अभाव को दूर करने में भी महत्ती भूमिका अदा की। समाज के अन्य विशिष्ठ लोगों के साथ मिलकर बोकाखात में सीएनबी (विज्ञान) कॉलेज की स्थापन की और आज यह शिक्षानुष्ठान विज्ञान की शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा हैं। वे इस कालेज की प्रबंध समिति के संस्थापक कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में सेवाएं प्रदान कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने बोकाखात की जेडीएसजी कॉलेज और बोकाखात टाउन हाई स्कूल के विकास कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई थी। बेहद मिलनसार व मृदुभाषी काशीराम चौधरी ने वर्ष 1975 में सक्रिय राजनीति के साथ जुड़कर कांग्रेस के टिकट पर बोकाखात गांव पंचायत्त के उपाध्यक्ष पद पर शानदार जीत हासिल की और अपने पांच वर्षीय कार्यकाल के दौरान विकास के कई कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया। बाद में उन्होंने अपने आपको सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया और सामाजिक व धार्मिक कार्यों से जुड़ गए। वे मानते थे कि समाजहित के कार्यों को करते रहने की प्रेरणा उन्हें बोकाखात हिंदी विद्यालय से प्राप्त हुई। वहीं से उन्होंने सामाजिक कार्यों की शुरुआत की। वर्ष 1975 में माताजी और वर्ष 1979 में पिताजी के देहांत के पश्चात पारिवारिक जिम्मेवारियों को बेखूबी निभाते रहे और सामाजिक कार्यों के साथ सक्रियता से जुड़े रहे। धार्मिक कार्यों में सदैब तत्पर रहे काशीराम चौधरी की बोकाखात मारवाड़ी समाज की धरोहर स्वरूप श्री सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी में भी भूमिका सराहनीय रही।ठाकुरबाड़ी को सुचारू रूप से संचालित करने वाली समिति श्री बोकाखात नुमलीगढ़ सत्यनारायण मंदिर प्रबंध समिति की कमान एक लंबे अरसे तक उनके कंधों पर रहो। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने समाज सुधार संबंधित कई प्रस्ताव पारित किए और इन्हें लागू भी करवाया, जो आज भी समाज में बरकरार हैं। साथ ही नुमलीगढ़ स्थित श्री सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी के जीर्णोद्धार में भी उनकी भागीदारी अहम रही। बोकाखात नगर में श्रीश्री हनुमान जयंती महोत्सव की शुरुआत हुई। वे श्रीश्रो हनुमान जयंत्ती महोत्सव पालन समिति के संस्थापक अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुके हैं। बोकाखात का यह महोत्सव राज्यभर में आज भी काफी लोकप्रिय और आकर्षण का केंद्र है।वे सदैव कुछ नया कर गुजरने का जज्बा रखते थे। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से वे समय-समय पर समाज के अभावों को दूर करने की भरपूर कोशिश करते रहते हैं। गोलाघाट जिले के बोकाखात समेत नुमलीगढ़ से हाथीखोली तक समाज के एक बहुत बड़े अभाव की आपूर्ति करने में उन्होंने महत्ती भूमिका अदा की थी। बोकाखात में एक विवाह भवन की कमी लंबे अरसे से खल रही थी। कर्मठ स्रामाजिक नेता काशीराम चौंधरी ने समाजबंधुओं के पूर्ण सहयोग से अध्यक्ष के रूप में इसकी कमान संभाली और अपनी कर्मपरायणता से इस कार्य को सफलता का जामा पहनाकर ही दम लिया। बोकाखात
नगर में सभी सुविधा से संपन्न श्री सत्यनारायण मंदिर खेवा सदन नामक इस शानदार बिबाह भवन का विधिवत्त उद्घाटन गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (कार्यवाहक) वीडी ज्ञानी ने 24 अप्रैल 1998 को किया। उद्घाटन के मौके पर कृतज्ञता स्वरूप समाज की ओर से काशीराम चौधरी का अभिनंदन किया गया।काशीराम चौधरी देवी-देवताओं के परम भक्त हैं। कलियुग के अवतारी बाबा रामदेव जी महाराज के भक्तों की परम इच्छा थी कि बोकाखात में भी बाबा का एक भव्य मंदिर का निर्माण हो। इसकी भूमि खरीदने से लेकर मंदिर के निर्माण कार्य की कमान भी समाज ने उनपर सौंप दी। उन्होंने सिर्फ ढाई वर्ष में भक्तों के पूर्ण सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया और बड़ी भव्यता के साथ वर्ष 2012 में नबनिर्मित मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ। स्थापनाकाल से ही बे मंदिर की समिति के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। भक्ति भावना से ओतप्रोत्त काशीराम चौधरी बोकाखात के तमाम मंदिर, नामघर, थान आदि के साथ सदैव जुड़े रहे हैं और इसके विकास कार्यों में दिल खोलकर योगदान दिया है। साहित्य-संस्कृति के साथ भी उनका लगाव खासा रहा है। असम साहित्य सभा के आजीवन सदस्य काशौराम चौधरी ने वर्ष 1996 में बोकाखात मे संपन्न असम साहित्य सभा के 62वें अधिवेशन की स्वागत समिति के कोषाध्यक्ष पद पर आसीन होकर अपनी सेवाएं प्रदान कों।इसके अलाबा बोकाखात की बारुवारी पूजा कमेटी, बोकाखात नाट्य मंदिर, बोकाखात व्यवसाय संस्था जैसी यहां की तमाम प्रमुख संस्थाओं में भी उनकी सराहनीय भूमिका रही थी। वे मारबाड़ी सम्मेलन की बोकाखात शाखा के अध्यक्ष तथा मारबाड़ी युवा मंच की बोकाखात शाखा के सलाहकार रह चुके थे। वे रामदेवरा की रामदेव कुंज, नगांब और शिवसागर के श्री श्याम मंदिर के ट्रस्ट के भी सदस्य थे।एक सहदय इंसान काशीराम चौंधरी ने व्यावसायिक क्षेत्र में ऊंचाइयां हासिल की हें। ब्रिक फिल्ड और लोकनिर्माण विभाग के कॉन्ट्रेक्टर के रूप में व्यवसाय की शुरुआत तो की पर इस व्यवसाय से घाटा सहा, किंतु हिम्मत न हारते हुए व्यवसाय क्षेत्र में डटे रहे और वर्ष 1962 और 1975 में क्रमशः बोकाखात और नुमलीगढ़ में दो पेट्रोल पंप लगाकर इस व्यवसाय में काफी तरक्की की। हालांकि पेपर मिल में बांस आपूर्ति और चाय बागानों में सामानों की आपूर्ति का कारोबार भी किया, किंतु बाद में इन व्यवसायों से अपने को अलग कर लिया। इसके अलाबा लगभग 5 वर्षों से गुवाहाटी में इंडियन ऑयल की ल्यूब ऑयल की स्रीएनएफ का उनका कारोबार चल रहा है। अपने व्यवसाय के दायरे को बढ़ाया और करीब करीब 60 से 70 परिवारों को झनमें नियुक्तयां देकर उन्हें भी परिबार का पालन-पोषण करने की सुविधा उपलब्ध करवाई। उनको धार्मिक व सामाजिक कार्यों में लगे रहने के साथ-साथ वाहन चालन का भी बहुत शौक था।एक बार उन्होंने बोकाखात में मंचन किए गए जालियाबाला बाग नामक हिंदी नाटक में किरदार निभाया था।सामाजिक क्षेत्र के अलावा पारिवारिक रूप से भी वे एक संपन्न व्यक्ति थे। तीन विवाहित पुत्र- जीवन,अनिल और सुनील तथा चार विवाहिता पुत्रियों- ललिता, मंजू (रचना), शारदा और रंजू सहित उनका विशाल परिवार पौजत्र-पौत्री से भरापूरा है। यह सुव्यवस्थित चौधरी परिवार समाज के लिए एक मिसाल हे। उन्होंने अपने पूरे परिवार को संस्कारी बनाया हैं और पारिवारिक जिम्मेवारियों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी भागीदारी निभाने की शिक्षा दी हैं | फलस्वरूप उनके बड़े सुपुत्र जीवन चौधरी भी समाज के कई संस्थाओं की बागडोर अपने कंधों पर संभालकर समाज सेवा में कार्यरत हैं। उम्र के आखरी पड़ाव में भी वे अपनी इच्छाशक्ति से सामाजिक कार्य करते रहे। अस्वस्थता के बावजूद वे अपने शुभाकांक्षियों को समाज के विकास कार्यों को आगे बढ़ाते रहने की प्रेरणा देते रहे। उनका मानना था कि समाज के नेतृत्व में नम्रता व सहनशीलता के साथ सबको एक साथ लेकर चलने की क्षमता होनी चाहिए, जिससे समाज में हमेशा भाईचारा व आपसी सौहार्द बना रहे है। 'काशीराम चौधरी समाज के गौरबमय संपद हें। उन्होंने हर मोर्चे पर एक निडर योद्धा के रूप में अपनी निःस्वार्थ सेवा समाज व इंसानियत को दी थी। सफलता और विफलता दोनों ही उनके जीवन का हिस्सा रहा है। उन्हें मिली तमाम सफलता के बावजूद भी उनके मूल स्वभाव में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिला। समाज में उनके सामाजिक योगदान की स्वीकृतिस्वरूप समय-समय पर विभिन्न संगठनों ने अपने-अपने मंर्चो पर उनका जोरदार सार्वजनिक अभिनंदन किया है। खासकर वे सीएनबी (विज्ञान) कॉलेज की रजत जयंती समारोह में किए गए अभिनंदन से काफी अभिभूत थे। साथ ही हाल ही में बोकाखात के महुरा पथार में सफलता के साथ संपन्न श्रीमंतर शंकरदेव संघ्र के 89वें अधिवेशन में उनका अभिनंदन किया गया था. हालांकि अस्वस्थता के चलते वे इसमें शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो पाए, किंतु आयोजकें ने उन्हें सम्मान स्वरूप प्रदान की गई अभिनंदन सामग्री को उनके निवास पर पहुंचकर प्रदान की। उनके दादा-परदादा राजस्थान के कोहिना के मूल निवासी थे।कालांतर में असम पधारकर यहाँ की मिट्टी व संस्कृतिमें हृदयता से मिलकर सदैव यहां की दिन दुगुनी-रात चौगुनी तरक्की के प्रयास में बीती थी ।समाज के एक ऐसे कर्मशील सेनानी के चले जाने से समाज को अपूरणिया क्षति हुई जो कभी पूरी नही की जा सकती.
Sri Jiwan Choudhury ( Son)
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MY LAST VISIT☹️ It was time to say goodbye. I was upset, my mouth had gone dry. Slowly I bend over and gave you a kiss. Your brown eyes filled with sadness, the time we spent together I will miss. When I pulled away, It was a pain in my heart. I didn't want you to leave me, I didn't want to be apart. Sadly, I knew this goodbye meant it was forever. We have so many memories that I will always remember. The drive back home was the saddest I ever had. I cried so hard, I felt so bad. I prayed that God would let you stay. But eventually He took you far away. It's all for the best, I learned to face. You are free from pain, and in a better place. Your memory is alive, to this day. I love you so much, Dadu even though you're far away. I know you look down on me and still love me with all your heart, a bond so strong, it will never break apart. Please remember me, and all the good times. For I love you so much, I put it in rhyme.🙏🙏 Keep showering your blessings to all of us. Piyush- Pragatee Agarwal
"बाबा मैं तेरी गुड़िया, टुकड़ा हूं तेरे दिल का एक बार फिर से देहलीज पार करा दे।" बाबा, आप तो हमेशा रहने वाले थे ना हमारे पास? अभी तोह हमें और ढेर सारी बातें करनी बाकी थी, बहुत सारी प्लैनिंग बाकी थी। आपक ही है वह एक जिसने हमेशा मुझे समझा है। अब कौन समझेगा बाबा? कैसी भी मांग हो, आपने हमेशा पूरी की। जिस दौर में पोता पोती में भेद था, उस समय में आपने हमें पोतों से ज़्यादा प्यार दिया। ज़िन्दगी की हर राह में अच्छी सीख दी। आज कहीं भी जाते हैं लोग हमें आपके ही नाम से जानते है। हमें गर्व है कि हम आपके संतान है। Aadiv बहुत खुश किस्मत है कि उसको आपका और दादीमाँ का बहुत सारा प्यार मिला। आप सदैव ही हमारे जीवन में प्रेरणा बनके रहेंगे। बस दुख एक ही बात का है कि घर आते हुए अब आपका फोन नहीं आएगा कि "जल्दी आओ, कहां पोहोंचे हो?" कोई भी फंक्शन में वह आपके वाली मस्ती नहीं रहेगी। चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए हम अपने जीवन में, दिल का एक कोना हमेशा आपको याद करता रहेगा। - अंकिता पंसारी
Wish you peaceful after death Dadaji. Man of respect and dignity with lots of patience. I lost my grandfather ( your very own brother) long back in 2000 when I have been just 5, but admist my cousin enjoying grandparents love and pampering , you always reassured me with your gaze of warmth and love. Thank you for being there for entire Choudhary family. Love you Dadaji . With your death, it's been a great void in our family.
MR SUNIL CHOUDHURY
(SON OF Shri KASHIRAM CHOUDHURY)
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Sonal Agarwal (Grand Father)
Dadaji has led a life full of substance. Each passage of his life teaches new lessons for the generation to come. He is a great source of inspiration for his selfless service and work for the growth of the society. You will always be in everyone's heart and remembered by your good deeds.